नमस्ते दोस्तों,हर युवा के मन में सबसे अहम सवाल करियर को लेकर होता है। करियर का सही चुनाव करना वास्तव में मुश्किल काम है। प्रत्येक व्यक्ति के अन्दर एक मौलिक प्रतिभा होती है। उस मौलिक प्रतिभा को पहचान कर करियर का चुनाव किया जाये तो सफलता कि शतप्रतिशत सम्भावना रहती है। अब सवाल यह उठता है अन्दर की मौलिक प्रतिभा को पहचाना कैसे जाये?
तिष विज्ञान के आधार पर व्यक्ति की कुण्डली का विवेचन करके करियर के क्षेत्र का निर्धारण किया जा सकता है।आज के युग में सबसे महत्वपूर्ण पेशा डाक्टर का है। डाक्टर को लोग आज भी भगवान के तुल्य ही मानते है। डाक्टरी का पेशा चुनने से पहले इन बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। व्यक्ति में डाक्टरी की शिक्षा लेने की कितनी सम्भावना है ? क्या व्यक्ति चिकित्सा के क्षेत्र सफलता प्राप्त करेगा ? चिकित्सा के क्षेत्र में व्यक्ति फिजीशियन बनेगा, सजर्न बनेगा, या किसी रोग का विशेषज्ञ बनेगा ?
कुण्डली में शिक्षा के भाव
जन्मपत्री में दूसरा व पंचम भाव शिक्षा से सम्बन्धित होता है। दूसरे भाव से प्राथमिक शिक्षा के बारे में जाना जाता है और पंचम भाव से उच्च शिक्षा का आकलन किया जाता है। किसी भी तकनीकी शिक्षा का करियर के रूप में परिवर्तन होना तभी संभव है, जब पंचम भाव व पंचमेश का सीधा सम्बन्ध दशम भाव या दशमेश से बन जाये। अतः इनका आपस में रिलेशन होना आवश्यक होता है। इससे यह पता किया जा सकता व्यक्ति जिस क्षेत्र में शिक्षा में शिक्षा प्राप्त करेगा, उसे उसी क्षेत्र में जीविका प्राप्त होगी या नहीं ? पंचम भाव का दशम भाव से जितना अच्छा सम्बन्ध होगा, अजीविका के क्षेत्र में यह उतना ही अच्छा माना जायेगा। इन दोनों भावों में स्थान परिवर्तन, राशि परिवर्तन, दृष्टि सम्बन्ध या युति सम्बन्ध होना चाहिए। यदि पंचम व दशम भाव के सम्बन्ध से बनने वाला योग छठें या बारहवें भाव में बन रहा है तो चिकित्सा के क्षेत्र में जाने की प्रबल सम्भावना रहती है। रोग के लिए छठें भाव को देखा जाता है और अस्पताल के लिए बारहवें भाव का विवेचन किया जाता है। एक चिकित्सक का जीवन घर में कम अस्पताल में ज्यादा व्यतीत होता है। छठें घर से ऐसे रोग देखे जाते है, जिनके ठीक होने की अवधि कम से कम एक वर्ष होती है और अष्ठम भाव से लम्बी अवधि के रोग देखे जाते है। अतः डाक्टर बनने के लिए कुण्डली में छठें, आठवें व बारहवें का प्रबल होना अति-आवश्यक होता है। डाक्टरी पेशे के लिए कुण्डली के दूसरे व ग्यारहवें भाव को भी देखा जाता है। दूसरा भाव धन का है और ग्यारहवें भाव से लाभ व आमदनी देखी जाती है। इन भावों का विश्लेषण करने से यह पता लगाया जा सकता है कि व्यक्ति को डाक्टरी के पेशे में आय की प्राप्ति किस स्तर तक होगी। यदि दशम भाव व दशमेश का सम्बन्ध चौथे भाव से है तो व्यक्ति अपने पेशे में प्रसिद्ध पायेगा।
फल चिकित्सक बनने में ग्रहों का रोल
चिकित्सक बनने में मंगल ग्रह का विशेष रोल होता है। मंगल साहस, चीड़-फार, आपरेशन आदि चीजों का कारक होता है। मंगल अचानक होने वाली घबराहट से बचाता है और त्वरित निर्णय लेने की शक्ति देता है। चिकित्सा क्षेत्र में गुरू की भूमिका भी अहम होती है। गुरू की कृपा से ही कोई व्यक्ति किसी का इलाज करके उसे स्वस्थ्य कर सकता है। किसी भी व्यक्ति के एक सफल चिकित्सक बनने के लिए गुरू का लग्न, पंचम व दशम भाव से सम्बन्ध होना आवश्यक होता है। चिकित्सकों की कुण्डली में चन्द्रमा का भी स्थान होता है। चन्द्रमा को जड़-बूटी का एंव मन का कारक माना जाता है। यदि चन्द्रमा मजबूत नहीं होगा तो डाक्टर के द्वारा दी गई दवायें लाभ नहीं करेगी। चन्द्र पीडि़त हो या पाप ग्रहों द्वारा दृष्ट हो तो डाक्टर में मरीज को तड़पते हुये देखते रहने की सहनशक्ति विद्यमान होती है। डाक्टर की कुण्डली में चन्द्रमा का सम्बन्ध त्रिक भावों में होना सामान्य योग है। सर्जनों की कुण्डली में सूर्य व मंगल दोनों का मजबूत होना जरूरी होता है। क्योंकि सूर्य, आत्म-विश्वास, ऊर्जा का कारक है और मंगल, टेकनिक, साहस व चीड़-फाड़ से सम्बन्धित होता है। जब तक व्यक्ति आत्म-विश्वास, साहस, टेकनिक व ऊर्जा से लबरेज नहीं होगा तब-तक वह एक सफल सर्जन चिकित्सक नहीं बन पायेगा।
डाक्टर बनने के कुछ विशेष योग
तिष विज्ञान के आधार पर व्यक्ति की कुण्डली का विवेचन करके करियर के क्षेत्र का निर्धारण किया जा सकता है।आज के युग में सबसे महत्वपूर्ण पेशा डाक्टर का है। डाक्टर को लोग आज भी भगवान के तुल्य ही मानते है। डाक्टरी का पेशा चुनने से पहले इन बातों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। व्यक्ति में डाक्टरी की शिक्षा लेने की कितनी सम्भावना है ? क्या व्यक्ति चिकित्सा के क्षेत्र सफलता प्राप्त करेगा ? चिकित्सा के क्षेत्र में व्यक्ति फिजीशियन बनेगा, सजर्न बनेगा, या किसी रोग का विशेषज्ञ बनेगा ?
कुण्डली में शिक्षा के भाव
जन्मपत्री में दूसरा व पंचम भाव शिक्षा से सम्बन्धित होता है। दूसरे भाव से प्राथमिक शिक्षा के बारे में जाना जाता है और पंचम भाव से उच्च शिक्षा का आकलन किया जाता है। किसी भी तकनीकी शिक्षा का करियर के रूप में परिवर्तन होना तभी संभव है, जब पंचम भाव व पंचमेश का सीधा सम्बन्ध दशम भाव या दशमेश से बन जाये। अतः इनका आपस में रिलेशन होना आवश्यक होता है। इससे यह पता किया जा सकता व्यक्ति जिस क्षेत्र में शिक्षा में शिक्षा प्राप्त करेगा, उसे उसी क्षेत्र में जीविका प्राप्त होगी या नहीं ? पंचम भाव का दशम भाव से जितना अच्छा सम्बन्ध होगा, अजीविका के क्षेत्र में यह उतना ही अच्छा माना जायेगा। इन दोनों भावों में स्थान परिवर्तन, राशि परिवर्तन, दृष्टि सम्बन्ध या युति सम्बन्ध होना चाहिए। यदि पंचम व दशम भाव के सम्बन्ध से बनने वाला योग छठें या बारहवें भाव में बन रहा है तो चिकित्सा के क्षेत्र में जाने की प्रबल सम्भावना रहती है। रोग के लिए छठें भाव को देखा जाता है और अस्पताल के लिए बारहवें भाव का विवेचन किया जाता है। एक चिकित्सक का जीवन घर में कम अस्पताल में ज्यादा व्यतीत होता है। छठें घर से ऐसे रोग देखे जाते है, जिनके ठीक होने की अवधि कम से कम एक वर्ष होती है और अष्ठम भाव से लम्बी अवधि के रोग देखे जाते है। अतः डाक्टर बनने के लिए कुण्डली में छठें, आठवें व बारहवें का प्रबल होना अति-आवश्यक होता है। डाक्टरी पेशे के लिए कुण्डली के दूसरे व ग्यारहवें भाव को भी देखा जाता है। दूसरा भाव धन का है और ग्यारहवें भाव से लाभ व आमदनी देखी जाती है। इन भावों का विश्लेषण करने से यह पता लगाया जा सकता है कि व्यक्ति को डाक्टरी के पेशे में आय की प्राप्ति किस स्तर तक होगी। यदि दशम भाव व दशमेश का सम्बन्ध चौथे भाव से है तो व्यक्ति अपने पेशे में प्रसिद्ध पायेगा।
फल चिकित्सक बनने में ग्रहों का रोल
चिकित्सक बनने में मंगल ग्रह का विशेष रोल होता है। मंगल साहस, चीड़-फार, आपरेशन आदि चीजों का कारक होता है। मंगल अचानक होने वाली घबराहट से बचाता है और त्वरित निर्णय लेने की शक्ति देता है। चिकित्सा क्षेत्र में गुरू की भूमिका भी अहम होती है। गुरू की कृपा से ही कोई व्यक्ति किसी का इलाज करके उसे स्वस्थ्य कर सकता है। किसी भी व्यक्ति के एक सफल चिकित्सक बनने के लिए गुरू का लग्न, पंचम व दशम भाव से सम्बन्ध होना आवश्यक होता है। चिकित्सकों की कुण्डली में चन्द्रमा का भी स्थान होता है। चन्द्रमा को जड़-बूटी का एंव मन का कारक माना जाता है। यदि चन्द्रमा मजबूत नहीं होगा तो डाक्टर के द्वारा दी गई दवायें लाभ नहीं करेगी। चन्द्र पीडि़त हो या पाप ग्रहों द्वारा दृष्ट हो तो डाक्टर में मरीज को तड़पते हुये देखते रहने की सहनशक्ति विद्यमान होती है। डाक्टर की कुण्डली में चन्द्रमा का सम्बन्ध त्रिक भावों में होना सामान्य योग है। सर्जनों की कुण्डली में सूर्य व मंगल दोनों का मजबूत होना जरूरी होता है। क्योंकि सूर्य, आत्म-विश्वास, ऊर्जा का कारक है और मंगल, टेकनिक, साहस व चीड़-फाड़ से सम्बन्धित होता है। जब तक व्यक्ति आत्म-विश्वास, साहस, टेकनिक व ऊर्जा से लबरेज नहीं होगा तब-तक वह एक सफल सर्जन चिकित्सक नहीं बन पायेगा।
डाक्टर बनने के कुछ विशेष योग
- लग्न में मंगल स्वराशि या अपनी उच्च राशि में हो तो व्यक्ति में सर्जन चिकित्सक बनने के गुण होते है। मंगल से साहस आता है जिससे कि रक्त देखकर घबराहट नहीं आती है।
- कुण्डली में लाभेश व षठेश की युति लाभ घर में हो तथा मंगल, चन्द्र व सूर्य शुभ स्थिति में होकर केन्द्र या त्रिकोण में बैठे हो तो व्यक्ति चिकित्सा के क्षेत्र से जुड़ता है। इन सभी का यदि पंचम, दशम व दशमेश से अच्छा सम्बन्ध हो तो सफलता में चार-चॉद लग जाते है।
- लग्नेश बलवान होकर नवम भाव में बैठा हो या नवमेश, दशम व दशमेश के साथ किसी भी प्रकार अच्छा सम्बन्ध हो तो व्यक्ति डाक्टर बनकर विदेश में ख्याति प्राप्त करता है।
- लग्न में मगंल स्वराशि, उच्च राशि का हो साथ में सूर्य भी अच्छी स्थिति में हो तो व्यक्ति एक अर्थो सर्जन बनता है। कुण्डली में गुरू व चन्द्र की स्थिति काफी मजबूज हो लेकिन मंगल पीडि़त हो या पाप ग्रहों द्वारा दृष्ट हो तो सफल फिजीशियन बनता है।
- कुण्डली में मंगल की स्थिति मजबूत हो साथ में अपनी राशि या मित्र की राशि में होकर सूर्य चौथे भाव में बैठा हो और पाप ग्रहों से दृष्ट न हो तो जातक एक सफल हार्ट सर्जन बनता है।
- लग्न में मजबूत चन्द्रमा हो, गुरू बलवान होकर केतु के साथ बैठा है तथा छठें भाव से किसी प्रकार अच्छा सम्बन्ध हो तो व्यक्ति होमोपैथिक डाक्टर बनता है।
- सूर्य व चन्द्रमा जड़ी-बूटियों का कारक होता है और गुरू एक अच्छा सलाहकार व मार्गदर्शक होता है। इन तीनों का सम्बन्ध छठें भाव, दशम भाव व दशमेश से होने से व्यक्ति आयुर्वेदिक चिकित्सक बनता है।