इसलिए होती पूजा
हिंदू धर्म में कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को गोवत्स द्वादशी कहते हैं। इस दिन को गोवत्स द्वादशी के अलावा बच्छ दुआ और बछ बारस नाम से भी जाना जाता है। इस दिन गौमाता और उसके बछड़े का दर्शन और पूजन करना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद पहली बार यशोदा मइया ने इसी दिन गौमाता का दर्शन और विधिविधान से पूजन किया था। गोवत्स द्वादशी को लेकर विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में अलग-अलग कथाएं भी प्रचलित हैं। इसदिन महिलाओं को गाय के दूध का सेवन नहीं करना चाहिए।
ऐसे करें गौपूजन
गोवत्स द्वादसी के दिन दूध देने वाली गाय और उसके बछड़े को स्नान आदि कराएं। इसके बाद उन्हें एक नया वस्त्र ओढ़ाएं। फूल माला चढ़ाने के बाद उनके माथे पर सिंदूर और सींगों में गेरू लगाएं। फिर घी, गुड़, आटा, गेरू, फल, मिठाई आदि गाय माता को अर्पित करें। कथा सुनकर घी के दीपक से आरती करें। इसके बाद गाय माता से अपनी संतानों की लंबी उम्र और परिवार की खुशियों के लिए पैर छूकर विनती करें। ध्यान रखें अगर आसानी से पैर छूना संभव नहीं है तो गौमाता के पैरों तले की मिट्टी को माथे से लगाएं।
गाय में तीर्थ
मान्यता है कि इसदिन जो महिलाएं गाय-बछड़े की पूजा करती हैं उनके घर में खुशियों का आगमन होता हैं। गौमाता की कृपा से परिवार में किसी की अकाल मृत्यु नहीं होती है। यह पूजन बेटों की सलामती व लंबी उम्र के लिए भी होता है। पुराणों में गौमाता में समस्त तीर्थ होने का व्याख्यान है। गौमाता के शरीर के अलग-अलग भागों में अलग-अलग देवों का वास होता है। देश के कुछ भागों में यह साल में दो बार होती है। एक बार भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की द्वादशी और दूसरी बार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मनाई जाती है।
हिंदू धर्म में कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को गोवत्स द्वादशी कहते हैं। इस दिन को गोवत्स द्वादशी के अलावा बच्छ दुआ और बछ बारस नाम से भी जाना जाता है। इस दिन गौमाता और उसके बछड़े का दर्शन और पूजन करना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद पहली बार यशोदा मइया ने इसी दिन गौमाता का दर्शन और विधिविधान से पूजन किया था। गोवत्स द्वादशी को लेकर विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में अलग-अलग कथाएं भी प्रचलित हैं। इसदिन महिलाओं को गाय के दूध का सेवन नहीं करना चाहिए।
ऐसे करें गौपूजन
गोवत्स द्वादसी के दिन दूध देने वाली गाय और उसके बछड़े को स्नान आदि कराएं। इसके बाद उन्हें एक नया वस्त्र ओढ़ाएं। फूल माला चढ़ाने के बाद उनके माथे पर सिंदूर और सींगों में गेरू लगाएं। फिर घी, गुड़, आटा, गेरू, फल, मिठाई आदि गाय माता को अर्पित करें। कथा सुनकर घी के दीपक से आरती करें। इसके बाद गाय माता से अपनी संतानों की लंबी उम्र और परिवार की खुशियों के लिए पैर छूकर विनती करें। ध्यान रखें अगर आसानी से पैर छूना संभव नहीं है तो गौमाता के पैरों तले की मिट्टी को माथे से लगाएं।
गाय में तीर्थ
मान्यता है कि इसदिन जो महिलाएं गाय-बछड़े की पूजा करती हैं उनके घर में खुशियों का आगमन होता हैं। गौमाता की कृपा से परिवार में किसी की अकाल मृत्यु नहीं होती है। यह पूजन बेटों की सलामती व लंबी उम्र के लिए भी होता है। पुराणों में गौमाता में समस्त तीर्थ होने का व्याख्यान है। गौमाता के शरीर के अलग-अलग भागों में अलग-अलग देवों का वास होता है। देश के कुछ भागों में यह साल में दो बार होती है। एक बार भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की द्वादशी और दूसरी बार कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को मनाई जाती है।