दोस्तों,अक्षय कुमार की फिल्म ''केसरी'' ये फिल्म एतिहासिक युद्ध बैटल ऑफ सारागढ़ी पर आधारित है। इस फिल्म में अक्षय कुमार हवलदार ईशर सिंह के रोल में नजर आने वाले हैं। ईशर सिंह सिख रेजिमेंट के कमांडर थे। सारागढ़ी का युद्ध साल 1897 में लड़ा गया था। स इस युद्ध में 36 सिख रेजिमेंट के 21 जवानों ने 10 हजार अफगान सैनिकों को धूल चटा दी थी।
दोस्तों आज हम बात करने वाले ऐसे वीरों की जिनकी कहानी पूरी दुनिया के लिए के लिए मिसाल बनी।
सारागढ़ी की असली कहानी:-
दौर था 1897 का, ब्रिटिश सेना का दबदबा बढ़ता जा रहा था। अंग्रेजों ने भारत के साथ साथ अफगानियों पर भी हमले शुरू कर दिए थे। भारत अफगान सीमा पर उस समय दो किले हुवा करते थे। गुलिस्तान का किला ओर लोखाट का किला। चूंकि ये एक दूसरे से काफी दूर पड़ते थे इसलिए इनके बीच सारंगढ़ की पोस्ट बनवाई गई, दोनों किलों में एक दूसरे को सिग्नल भेजने के लिए। यहां से हेलियोग्राफी द्वारा सन्देश भेजा जाता था। इस किले की सुरक्षा के लिए सिख रेगेमेंट के 21 सिखों को तैनात किया गया था। इस छोटी सी टुकड़ी का नेतृत्व ईश्वर सिंह करते थे। टुकड़ी छोटी थी पर इनकी बहादुरी पर भरोसा अंग्रेजों को पूरा था।
सारागढ़ी का माहौल गर्म था, सारंगढ़ की यूनिट को सतर्क रहने को कहा गया। क्योंकि सारंगढ़ की पोस्ट अंग्रेजी सरकार के लिए बहुत महत्वपूर्ण थी। जिस पर अफगानी कब्ज़ा करना चाहते थे। इसलिए अफगानियों ने उस पोस्ट पर बहुत हमले किये लेकिन उन 21 बहादुर जवानों ने उन्हें एक बार भी नही टिकने दिया।
लेकिन 12 सितम्बर 1897 में अपनी पूरी ताकत के साथ अफगानियों नें हमला किया ।
समय था सुबह का सभी सिख सैनिक सोये हुवे थे। सिंग्नल इंचार्ज गुरमुख सिंह ने देखा कि तकरीबन 10,000 अफगानी सैनिक अपनी पूरी ताकत के साथ किले पर कब्ज़ा करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं।
दुश्मन की इतनी बड़ी संख्या देख कर सब हैरान थे। किसी को समझ नही आ रहा था कि क्या किया जाए। आखिर इतनी बड़ी सेना को सिर्फ 21 लोग कैसे सम्भालते।
फिर भी जवानों ने अपनी बन्दूकें उठाई और अपनी अपनी पोजीशन ली। उनके पास ज्यादा देर लड़ने के लिए ज्यादा हथियार भी नहीं थे।
हमले का मकसद था लॉखार ओर गुलिस्तान के बीच का सम्पर्क तोड़ना। इसलिए ईश्वर सिंह( जो सिख सैनिकों का नेतृत्व कर रहे थे) ने इस हमले से निपटने के लिए तुरन्त अंग्रेजी सेना से सम्पर्क करना उचित समजा। क्योकि दुश्मन बहुत ज्यादा थे और वे सिर्फ 21।
अंग्रेजी सेना का जवाब आया कि अभी इतने कम समय में सेना नही भेजी जा सकती। तुम्हे खुद मोर्चा सम्भालना पड़े गा।
सिख बिना कोई शिक़ायत किये और बिन भागे। सभी सिख अपनी अपनी बंदूकें तान कर किले के ऊपरी सिरे पर खड़े हो गए।
अफगान ओर सिख सैनिकों के बीच अनुपात था 476 अफगानी सैनिकों पर 1 सिख जवान जो की बहुत ज्यादा था।पर सिखों का इतिहास गवाह है। कि एक सिख ढाई लाख के बराबर होता है।
सिख सेनिको का इतनी बड़ी सेना देख कर थोड़ा सा भी होंसला कम नही हुआ।
सन्नाटा चारों ओर छाया हुवा था। बस इस सन्नाटे में अफगानी सैनिकों के घोड़ों की आवाज़ सुनाई दे रही थी।
कुछ देर बाद हवलदार ईशर सिंह की गोली ने जंग की शुरूआत शुरू कर दी। दोनों तरफ से अंधाधुंध गोलियां चल रही थी। सिखों की केवल 21 बंदुके दहाड़ रही थी। अफगानियों की 10,000 बन्दूकों के सामने। सिखों की बहादुरी को देख अफगानी सैनिक समझ चुके थे कि ये जंग आसान नही होने वाली।
इसलिए उन्होंने पहले सिखों को हथियार डालने को कहा। पर सिख सैनिक हार मानने वालों में से कहा थे। इस प्रकार दोनों तरफ लड़ाई शुरू हो गयी। सिखों को अफगानियों ने चारों तरफ से घेर लिया। कुछ सैनिक युद्ध के दौरान जख्मी भी हुये।
इनमे सभी सैनिकों में सब लड़ाकू नही थे। इनमें से कुछ सिग्नल ओपरेटर थे, कुछ रसोइये। जंग चलती रही बंदूकें कम पड़ने लगी। फिर सिखों ने अपनी तलवार के साथ धावा बोल दिया।
सुबह से श्याम हो गयी लड़ते लड़ते। सिखों भी अपनी जी जान से लड़ाई लड़ते रहे।
पूरा दिन लड़ते लड़ते उनका शरीर कमजोर पड़ चुका था।
और तकरीबन 600 अफगानी सैनिको को मारकर वीरगति को प्राप्त हो गए। पर फिर भी लड़ाई खत्म नही हुई थी उनमे से एक बहादुर सैनिक 19 साल का गुरमुख सिंह अभी भी जिंदा था। जो रेडियो को ऑपरेट कर रहा था। जो पल -पल की खबर ब्रिटिश सेना को बता रहा था। उसी के कारण हम सब आज इस स्टोरी हो विस्तार से जानते है। अब बारी उसकी थी उसे मारने के लिए किसी अफगानी सैनिक की हिम्मत नही हो रही थी की उससे युद्ध करे।
कुछ ही देर में गुरमुख सिंह ने 30-40 सैनिकों को मार गिराया। जब अफगानी सैनिक उससे से जीत न सके तो उन्होंने उसकी पोस्ट को ही आग लगा दी। गुरमुख वीरगति को प्राप्त हो गए।
सारागढ़ी के 21 जवानो को सम्मान
जब ब्रिटिश सांसद में यह खबर पहुंची तो सभी ने खड़े हो कर वीर सिखों को श्रधांजलि दी। सभी वीर सिख सैनिकों को तब का सर्वोच्य वीरता पुरस्कार इंडियन आर्डर ऑफ मेरिट दिया गया।
ये लड़ाई इतनी बड़ी ओर साहस से भरी थी कि यूनेस्को ने इसे 8 महानतम लड़ाइयों में शामिल किया।
तो दोस्तो आप इस पोस्ट को पढ़कर आखिर समज ही गए होंगे की आखिर ''सारागढ़ी'' तथा ''केसरी'' फिल्म की कहानी क्या है! तो दोस्तों उम्मीद करता हु आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी,अगर आपको पसंद आई है तो आप इस पोस्ट को शेयर जरुर करे और हमारे साथ बने रहे!
आपका अमूल्य समय देने के लिए धन्यवाद् !
दोस्तों आज हम बात करने वाले ऐसे वीरों की जिनकी कहानी पूरी दुनिया के लिए के लिए मिसाल बनी।
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KESARI Real Story In Hindi | Saragadi Ki Kahani |
दौर था 1897 का, ब्रिटिश सेना का दबदबा बढ़ता जा रहा था। अंग्रेजों ने भारत के साथ साथ अफगानियों पर भी हमले शुरू कर दिए थे। भारत अफगान सीमा पर उस समय दो किले हुवा करते थे। गुलिस्तान का किला ओर लोखाट का किला। चूंकि ये एक दूसरे से काफी दूर पड़ते थे इसलिए इनके बीच सारंगढ़ की पोस्ट बनवाई गई, दोनों किलों में एक दूसरे को सिग्नल भेजने के लिए। यहां से हेलियोग्राफी द्वारा सन्देश भेजा जाता था। इस किले की सुरक्षा के लिए सिख रेगेमेंट के 21 सिखों को तैनात किया गया था। इस छोटी सी टुकड़ी का नेतृत्व ईश्वर सिंह करते थे। टुकड़ी छोटी थी पर इनकी बहादुरी पर भरोसा अंग्रेजों को पूरा था।
सारागढ़ी का माहौल गर्म था, सारंगढ़ की यूनिट को सतर्क रहने को कहा गया। क्योंकि सारंगढ़ की पोस्ट अंग्रेजी सरकार के लिए बहुत महत्वपूर्ण थी। जिस पर अफगानी कब्ज़ा करना चाहते थे। इसलिए अफगानियों ने उस पोस्ट पर बहुत हमले किये लेकिन उन 21 बहादुर जवानों ने उन्हें एक बार भी नही टिकने दिया।
लेकिन 12 सितम्बर 1897 में अपनी पूरी ताकत के साथ अफगानियों नें हमला किया ।
समय था सुबह का सभी सिख सैनिक सोये हुवे थे। सिंग्नल इंचार्ज गुरमुख सिंह ने देखा कि तकरीबन 10,000 अफगानी सैनिक अपनी पूरी ताकत के साथ किले पर कब्ज़ा करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं।
दुश्मन की इतनी बड़ी संख्या देख कर सब हैरान थे। किसी को समझ नही आ रहा था कि क्या किया जाए। आखिर इतनी बड़ी सेना को सिर्फ 21 लोग कैसे सम्भालते।
फिर भी जवानों ने अपनी बन्दूकें उठाई और अपनी अपनी पोजीशन ली। उनके पास ज्यादा देर लड़ने के लिए ज्यादा हथियार भी नहीं थे।
हमले का मकसद था लॉखार ओर गुलिस्तान के बीच का सम्पर्क तोड़ना। इसलिए ईश्वर सिंह( जो सिख सैनिकों का नेतृत्व कर रहे थे) ने इस हमले से निपटने के लिए तुरन्त अंग्रेजी सेना से सम्पर्क करना उचित समजा। क्योकि दुश्मन बहुत ज्यादा थे और वे सिर्फ 21।
अंग्रेजी सेना का जवाब आया कि अभी इतने कम समय में सेना नही भेजी जा सकती। तुम्हे खुद मोर्चा सम्भालना पड़े गा।
सिख बिना कोई शिक़ायत किये और बिन भागे। सभी सिख अपनी अपनी बंदूकें तान कर किले के ऊपरी सिरे पर खड़े हो गए।
अफगान ओर सिख सैनिकों के बीच अनुपात था 476 अफगानी सैनिकों पर 1 सिख जवान जो की बहुत ज्यादा था।पर सिखों का इतिहास गवाह है। कि एक सिख ढाई लाख के बराबर होता है।
सिख सेनिको का इतनी बड़ी सेना देख कर थोड़ा सा भी होंसला कम नही हुआ।
सन्नाटा चारों ओर छाया हुवा था। बस इस सन्नाटे में अफगानी सैनिकों के घोड़ों की आवाज़ सुनाई दे रही थी।
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KESARI Real Story In Hindi | Saragadi Ki Kahani |
इसलिए उन्होंने पहले सिखों को हथियार डालने को कहा। पर सिख सैनिक हार मानने वालों में से कहा थे। इस प्रकार दोनों तरफ लड़ाई शुरू हो गयी। सिखों को अफगानियों ने चारों तरफ से घेर लिया। कुछ सैनिक युद्ध के दौरान जख्मी भी हुये।
इनमे सभी सैनिकों में सब लड़ाकू नही थे। इनमें से कुछ सिग्नल ओपरेटर थे, कुछ रसोइये। जंग चलती रही बंदूकें कम पड़ने लगी। फिर सिखों ने अपनी तलवार के साथ धावा बोल दिया।
सुबह से श्याम हो गयी लड़ते लड़ते। सिखों भी अपनी जी जान से लड़ाई लड़ते रहे।
पूरा दिन लड़ते लड़ते उनका शरीर कमजोर पड़ चुका था।
और तकरीबन 600 अफगानी सैनिको को मारकर वीरगति को प्राप्त हो गए। पर फिर भी लड़ाई खत्म नही हुई थी उनमे से एक बहादुर सैनिक 19 साल का गुरमुख सिंह अभी भी जिंदा था। जो रेडियो को ऑपरेट कर रहा था। जो पल -पल की खबर ब्रिटिश सेना को बता रहा था। उसी के कारण हम सब आज इस स्टोरी हो विस्तार से जानते है। अब बारी उसकी थी उसे मारने के लिए किसी अफगानी सैनिक की हिम्मत नही हो रही थी की उससे युद्ध करे।
कुछ ही देर में गुरमुख सिंह ने 30-40 सैनिकों को मार गिराया। जब अफगानी सैनिक उससे से जीत न सके तो उन्होंने उसकी पोस्ट को ही आग लगा दी। गुरमुख वीरगति को प्राप्त हो गए।
सारागढ़ी के 21 जवानो को सम्मान
जब ब्रिटिश सांसद में यह खबर पहुंची तो सभी ने खड़े हो कर वीर सिखों को श्रधांजलि दी। सभी वीर सिख सैनिकों को तब का सर्वोच्य वीरता पुरस्कार इंडियन आर्डर ऑफ मेरिट दिया गया।
ये लड़ाई इतनी बड़ी ओर साहस से भरी थी कि यूनेस्को ने इसे 8 महानतम लड़ाइयों में शामिल किया।
तो दोस्तो आप इस पोस्ट को पढ़कर आखिर समज ही गए होंगे की आखिर ''सारागढ़ी'' तथा ''केसरी'' फिल्म की कहानी क्या है! तो दोस्तों उम्मीद करता हु आपको यह पोस्ट पसंद आई होगी,अगर आपको पसंद आई है तो आप इस पोस्ट को शेयर जरुर करे और हमारे साथ बने रहे!
आपका अमूल्य समय देने के लिए धन्यवाद् !