नारद मुनि को जब ब्रह्मा जी ने विवाह करने के लिए कहा तो उन्होंने विवाह करने से मना कर दिया और कहा आजीवन ब्रह्मचारी रहूंगा। ब्रह्मा जी इस बात से काफी नाराज हुआ और नारद मुनि को शाप भी दे दिया। ‘‘तुमने मेरी आज्ञा नहीं मानी, इसलिये तुम्हारा समस्त ज्ञान नष्ट हो जायेगा और तुम गन्धर्व योनी को प्राप्त कर कामिनीयों के वशीभूत हो जाओगे।’’ इसलिए नारद जी पहले गंदर्भ माने जाते हैं।
नारद विवाह नहीं करना चाहते थे लेकिन ब्रह्मा के श्राप के कारण अब उन्हें कई स्त्रियों के साथ रहने का दंड मिल चुका था। इससे नारद दुःखी हुए। नारदजी ने कहा आपका श्राप स्वीकार है लेकिन एक आशीर्वाद दीजिए कि जिस-जिस योनि में मेरा जन्म हो, भगवान कि भक्ति मुझे कभी न छोड़े एवं मुझे पूर्व जन्मों का स्मरण रहे। दो योनियों में जन्म लेने के बाद भगवान की भक्ति के प्रभाव से नारद परब्रह्मज्ञानी हो गये।
लेकिन, विवाह से मना करने वाले नारद जी के मन में एक बार शादी की ऐसी इच्छा जगी कि स्वयं विष्णु भगवान भी हैरान रह गए। इस संदर्भ में रामचरित मानस में एक कथा है कि एक बार नारद मुनि को अभिमान हो गया था कि वह काम भाव से मुक्त हो गए हैं। विष्णु भगवान ने नारद का अभिमान भंग करने के लिए एक माया नगरी का निर्माण किया।
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इस नगर में देवी लक्ष्मी राजकुमारी रूप में उत्पन्न हुईं। इन्हें देखकर नारद मुनि के मन में विवाह की इच्छा प्रबल हो उठी। वह विष्णु भगवान के पास हरि के समान सुन्दर रूप मांगने पहुंच गये। विष्णु भगवान ने नारद की इच्छा के अनुसार हरि रूप दे दिया।
हरि रूप लेकर जब नारद राजकुमारी के स्वयंवर में पहुंचे तो उन्हें विश्वास था कि राजकुमारी उन्हें ही वरमाला पहनाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, उस कन्या ने नारद को छोड़कर दीन हीन रूप में बैठे भगवान विष्णु के गले में वरमाला डाल दिया।
नारद वहां से उदास होकर लौट रहे थे तो रास्ते में एक जलाशय में अपना चेहरा देखा। अपने चेहरे को देखकर नारद हैरान रह गये क्योंकि उनका चेहरा बंदर जैसा लग रहा था। हरि का एक अर्थ विष्णु होता है और एक वानर होता है। भगवान विष्णु ने नारद को वानर रूप दे दिया था। नारद समझ गये कि भगवान विष्णु ने उनके साथ मजाक किया है। इन्हें भगवान पर बड़ा क्रोध आया।
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नारद सीधा बैकुण्ठ पहुंचे और आवेश में आकर भगवान को श्राप दे दिया कि आपको मनुष्य रूप में जन्म लेकर पृथ्वी पर जाना होगा। जिस तरह मुझे स्त्री का वियोग सहना पड़ा है उसी प्रकार आपको भी वियोग सहना होगा। इसलिए राम और सीता के रुप में जन्म लेकर विष्णु और देवी लक्ष्मी को वियोग सहना पड़ा।
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Narad Story In Puran |
लेकिन, विवाह से मना करने वाले नारद जी के मन में एक बार शादी की ऐसी इच्छा जगी कि स्वयं विष्णु भगवान भी हैरान रह गए। इस संदर्भ में रामचरित मानस में एक कथा है कि एक बार नारद मुनि को अभिमान हो गया था कि वह काम भाव से मुक्त हो गए हैं। विष्णु भगवान ने नारद का अभिमान भंग करने के लिए एक माया नगरी का निर्माण किया।
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इस नगर में देवी लक्ष्मी राजकुमारी रूप में उत्पन्न हुईं। इन्हें देखकर नारद मुनि के मन में विवाह की इच्छा प्रबल हो उठी। वह विष्णु भगवान के पास हरि के समान सुन्दर रूप मांगने पहुंच गये। विष्णु भगवान ने नारद की इच्छा के अनुसार हरि रूप दे दिया।
हरि रूप लेकर जब नारद राजकुमारी के स्वयंवर में पहुंचे तो उन्हें विश्वास था कि राजकुमारी उन्हें ही वरमाला पहनाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, उस कन्या ने नारद को छोड़कर दीन हीन रूप में बैठे भगवान विष्णु के गले में वरमाला डाल दिया।
नारद वहां से उदास होकर लौट रहे थे तो रास्ते में एक जलाशय में अपना चेहरा देखा। अपने चेहरे को देखकर नारद हैरान रह गये क्योंकि उनका चेहरा बंदर जैसा लग रहा था। हरि का एक अर्थ विष्णु होता है और एक वानर होता है। भगवान विष्णु ने नारद को वानर रूप दे दिया था। नारद समझ गये कि भगवान विष्णु ने उनके साथ मजाक किया है। इन्हें भगवान पर बड़ा क्रोध आया।
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नारद सीधा बैकुण्ठ पहुंचे और आवेश में आकर भगवान को श्राप दे दिया कि आपको मनुष्य रूप में जन्म लेकर पृथ्वी पर जाना होगा। जिस तरह मुझे स्त्री का वियोग सहना पड़ा है उसी प्रकार आपको भी वियोग सहना होगा। इसलिए राम और सीता के रुप में जन्म लेकर विष्णु और देवी लक्ष्मी को वियोग सहना पड़ा।