धूर्त भेड़िया - Hindi Moral Stories For Kids [Hindi Kahani]


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ब्रह्मारण्य नामक एक बन था। उसमें कर्पूरतिलक नाम का एक बलशाली हाथी रहता था। देह में और शक्ति में सबसे बड़ा होने से बन में उसका बहुत रौब था। उसे देख सारे बाकी पशु प्राणी उससे दूर ही रहते थे।
Dhurt Bhediya 
जब भी कर्पूरतिलक भूखा होता तो अपनी सूँड़ से पेड़ की टहनी आराम से तोड़ता और पत्ते मज़े में खा लेता। तालाब के पास जा कर पानी पीता और पानी में बैठा रहता। एक तरह से वह उस वन का राजा ही था। कहे बिना सब पर उसका रौब था। वैसे ना वह किसी को परेशान करता था ना किसी के काम में दखल देता था फिर भी कुछ जानवर उससे जलते थे।

जंगल के भेड़ियों को यह बात अच्छी नहीं लगती थी। उन सब ने मिलकर सोचा, "किसी तरह इस हाथी को सबक सिखाना चाहिये और इसे अपने रास्ते से हटा देना चाहिये। उसका इतना बड़ा शरीर है, उसे मार कर उसका मांस भी हम काफी दिनों तक खा सकते हैं। लेकिन इतने बड़े हाथी को मारना कोई बच्चों का खेल नहीं। किसमें है यह हिम्मत जो इस हाथी को मार सके?"

उनमें से एक भेड़िया अपनी गर्दन ऊँची करके कहने लगा, "उससे लड़ाई करके तो मैं उसे नहीं मार सकता लेकिन मेरी बुद्धिमत्ता से मैं उसे जरूर मारने में कामयाब हो सकता हूँ।" जब यह बात बाकी भेड़ियों ने सुनी तो सब खुश हो गये। और सबने उसे अपनी करामत दिखाने की इज़ाज़त दे दी।

चतुर भेड़िया हाथी कर्पूरतिलक के पास गया और उसे प्रणाम किया। "प्रणाम! आपकी कृपा हम पर सदा बनाए रखिये।"
कर्पूरतिलक ने पूछा, "कौन हो भाई तुम? कहाँ से आये हो? मैं तो तुम्हें नहीं जानता। मेरे पास किस काम से आये हो?"

"महाराज! मैं एक भेड़िया हूँ। मुझे जंगल के सारे प्राणियों ने आपके पास भेजा है। जंगल का राजा ही सबकी देखभाल करता है, उसीसे जंगल की शान होती है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि अपने जंगल में कोई राजा ही नहीं। हम सब ने मिलकर सोचा कि आप जैसे बलवान को ही जंगल का राजा बनाना चाहिये। इसलिये राज्याभिषेक का मुहुर्त हमने निकाला है। यदि आपको कोई आपत्ति नहीं हो तो आप मेरे साथ चल सकते हैं और हमारे जंगल के राजा बन सकते हैं।"

ऐसी राजा बनने की बात सुनकर किसे खुशी नहीं होगी? कर्पूरतिलक भी खुश हो गया। अभी थोड़ी देर पहले तो मैं कुछ भी नहीं था और एकदम राजा बन जाऊँगा यह सोचकर उसने तुरन्त हामी भर दी। दोनो चल पडे। भेड़िया कहने लगा, "मुहुर्त का समय नज़दीक आ रहा है, जरा जल्दी चलना होगा हमें।"

भेड़िया जोर जोर से भागने लगा और उसके पीछे कर्पूरतिलक भी जैसे बन पड़े, भागने की केाशिश में लगा रहा। बीच में एक तालाब आया। उस तालाब में ऊपर ऊपर तो पानी दिखता था। लेकिन नीचे काफी दलदल था। भेड़िया छोटा होने के कारण कूद कर तालाब को पार कर गया और पीछे मुड़कर देखने लगा कि कर्पूरतिलक कहाँ तक पहुँचा है।

कर्पूरतिलक अपना भारी शरीर लेकर जैसे ही तालाब में जाने लगा तो दलदल में फंसता ही चला गया। निकल न पाने के कारण में वह भेड़िये को आवाज़ लगा रहा था, "अरे! दोस्त, मुझे जरा मदद करोगे? मैं इस दलदल से निकल नहीं पा रहा हूँ।"
लेकिन भेड़िये का ज़वाब तो अलग ही आया, "अरे! मूर्ख हाथी, मुझ जैसे भेड़िये पर तुमने यकीन तो किया लेकिन अब भुगतो और अपनी मौत की घड़ियाँ गिनते रहो, मैं तो चला!" यह कहकर भेड़िया खुशी से अपने साथियों को यह खुशखबरी देने के लिये दौड़ पड़ा।

बेचारा कर्पूरतिलक!

इसीलिये कहा गया है कि एकदम से किसी पर यकीन ना करने में ही भलाई होती है।


2 सोने का अंडा देने वाले हंस की कहानी The Golden Egg Goose
The Golden Egg Goose
सोने का अंडा देने वाले हंस की कहानी The Golden Egg Goose
एक गाँव में एक हंस पालन करने वाला व्यापारी और उसकी पत्नी रहते थे। वह अलग-अलग बाजारों में जाकर हंस ख़रीदा करता था और घर में हंस पालन करता था।

एक दिन की बात है वो व्यापारी बाज़ार से हर दिन की तरह एक छोटा सुन्दर हंस खरीद कर लाया। कुछ महीने के बाद उस हंस ने अंडा दिया तो व्यापारी और उसकी पत्नी हैरान रह गए। वो अंडा सोने का था।

वह हंस उसी प्रकार प्रतिदिन एक सोने का अंडा देती और वो उस अंडे को बेच कर खूब पैसे भी कमाते। पर कुछ पैसे आने के कारण उनके मन में लालच बढ़ने लगा और झट से आमिर बनाने की चाहत होने लगी।

वह व्यापारी सोचने लगा कि अगर यह हंस हर दिन एक अंडा देती है तो इसके पेट में कितने सारे अंडे होंगे और अगर वो अंडे उसे मिल जाएँगे तो कितनी आसानी से वो जल्द से जल्द आमिर बन सकता है।

ऐसा सोच कर उस व्यापारी ने उस हंस को मार डाला और जब उसका पेट चिर के देखा तो उसमे कोई भी सोने का अंडा नहीं था। यह देख कर वह चीख-चीख कर रोने लगा।

कहानी से शिक्षा (Moral) – जीवन में कभी भी अधिक लोभ नहीं करना चाहिए क्योंकि अधिक लोभ करने से भविष्य में जो मिल रहा है आप उसे भी खो देंगे।
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